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एक राष्ट्र, एक शिक्षा , एक कानून

Education Initiatives

1-हमारा प्रयास होगा कि शिक्षा ज्ञानार्जन के लिए हो
2-विद्यालयों में जीवन को समग्रता से जीने की कला सिखाई जाए
3-छात्रो में शिष्य का शील और अध्यापकों में गुरु की गरिमा हो
4- आधुनिक विषयो के साथ ही सैन्य और तैराकी की शिक्षा तथा धर्म संस्कृति और योग की भी शिक्षा बच्चो को दी जाए
5-सभी महान विभूतियों की जीवनी पर शोध हों बच्चो को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ,वीर फौजियों और सिख गुरुओ के त्याग और बलिदान की गौरव गाथाएं पढाई जाए ।
6-इतिहास का पुनर्लेखन हो जिससे देश के महान सम्राटों को उनके संघर्षो को उचित गौरव पूर्ण स्थान मिले लुटेरे आक्रमण करियो का जहरीला गुणगान बन्द हो

हमारा प्रयास होगा कि-
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1- शिक्षा ज्ञानार्जन के लिए हो
2-विद्यालयों में जीवन को समग्रता से जीने की कला सिखाई जाए
3-छात्रो में शिष्य का शील और अध्यापकों में गुरु की गरिमा हो
4- आधुनिक विषयो के साथ ही सैन्य और तैराकी की शिक्षा तथा धर्म संस्कृति और योग की भी शिक्षा बच्चो को दी जाए
5-सभी महान विभूतियों की जीवनी पर शोध हों बच्चो को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ,वीर फौजियों और सिख गुरुओ के परोपकार ,त्याग और बलिदान की गौरव गाथाएं पढाई जाए ।
6-इतिहास का पुनर्लेखन हो जिससे छात्र महान विभूतियों से प्रेरणा ले सके देश के महान सम्राटों के संघर्षो को उचित गौरव पूर्ण स्थान मिले लुटेरे आक्रमण करियो का जहरीला गुणगान बन्द हो

इसमे कोई संदेह नही कि देश के सत्ताधीशों की घोर स्वार्थी भ्रष्ट और अदूरदर्शी नीतियों के चलते दिनोदिन बढ़ती बेरोजगारी के कारण आज युवाओं के जीवन का सर्वप्रथम प्रश्न, उसका जीविकोपार्जन हो गया है। इसमें अति धनाढ्य वर्ग या उच्च मध्यम वर्ग के युवाओं को अपवादस्वरूप देखा जा सकता है। पर ऐसे युवाओं की संख्या बहुत कम है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि देश के युवाओं के सामने रोजगार प्राप्त करना सबसे बड़ी चुनौती है।

One important question to be answered:

Ø एक और महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि क्या आज की शिक्षा व्यवस्था, युवाओं की प्रतिभाओं को पहचानने में सक्षम है या फिर किताबी ज्ञान पर आधारित डिग्रियों की लंबी फेहरिस्त के बीच देश के युवाओं में उस स्तर की प्रतिभा का अभाव है जितनी संबंधित नौकरियों के लिए चाहिए?
Ø खासकर सूचना प्रौद्योगिकी और विज्ञान पारिस्थितिक तंत्र में रोजगार ढूंढ़ते युवाओं में प्रतिभाओं की भारी कमी है।
Ø हाल ही में जारी एक आंकड़े में दावा किया गया है कि इस देश के 95 प्रतिशत इंजीनियर सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट के क्षेत्र में नौकरी करने के लायक नहीं है। जब इंजीनियरिंग की डिग्री या डिप्लोमाधारी युवाओं का यह हाल है, तो कल्पना की जा सकती है कि जो युवा शिक्षा भी पूरी नहीं कर पाए या जिनके पास तकनीकी डिग्रियां नहीं हैं, उनकी क्या दशा है।

Present Education and Jobs:

वोट बैंक बढ़ाने में जुटे नेताओ ने भारत की शिक्षा ब्यवस्था दलिया छाप बना दी है दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य तो यह है कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था ने युवाओं को भ्रमित कर दिया और संपूर्ण समाज ऐसे ‘मिथकों’ के ढेर पर बैठ गया, जिसे दूर करना सहज नहीं है।
Ø पहला मिथक यह कि शिक्षा के मायने घटिया स्कूली भोजन ,छात्र वृत्ति और डिग्रियां हासिल करना है।
Ø दूसरा मिथक यह है कि विज्ञान और उसकी विभिन्न शाखाओं से जुड़े विषय, प्रतिभा के उचित मानक हैं।
Ø तीसरा मिथक यह है कि साहित्य, कला और सामाजिक विज्ञान जैसे विषय प्रतिभाविहीन विद्यार्थियों का चुनाव होते हैं।
Ø चौथा मिथक यह है कि सफलता और आर्थिक स्वावलंबन के लिए प्रबंधन डिग्री जैसी उच्चस्तरीय शिक्षा की आवश्यकता है।
ऐसे अनेक मिथकों के मध्य, युवाओं की आकांक्षाएं स्वयं ही भ्रमित होकर, आगे बढ़ने का साहस नहीं कर पातीं। अगर वाकई उच्चस्तरीय शिक्षा के मानक सही साबित होते तो बेरोजगारों की एक लंबी फौज नहीं दिखाई देती।

Focus of present education:

Ø मौजूदा शिक्षा व्यवस्था में समझने के बजाय रटाया जाता है। युवाओं को हुनर सिखाने और उनकी सोच बदलने की कोशिश नहीं की जाती।
Ø सच तो यह है कि इस देश के अधिकतर युवा ऐसी डिग्रियों के साथ बाहर निकल रहे हैं जो उन्हें कुछ नहीं सिखातीं।
Ø अपने परम्परागत वंशानुगत ज्ञान के प्रति हीन भाव से भरे और तकनीकी ज्ञान में भी अधकचरे लाखों छात्रों का भविष्य स्वाभाविक तौर पर उज्ज्वल नहीं हो सकता।

हम उद्योग, कृषि व सेवा क्षेत्र में संतुलन स्थापित करेंगे आज उच्च शिक्षा में असंतुलित वृद्धि के कारण एक ओर हम बड़ी संख्या में तैयार हो रहे इंजीनियरों को उचित रोजगार नहीं दे पा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अनेक आवश्यक कार्यों के लिए प्रशिक्षित व्यक्ति उपलब्ध नहीं हैं। एक आकलन के अनुसार, स्नातक स्तर पर कला क्षेत्र में घटते प्रवेश के कारण आने वाले दशकों में पूरे विश्व में भाषा शिक्षकों की कमी होगी। तकनीकी क्षेत्र के बढ़ते प्रभाव के कारण मूलभूत विज्ञान जैसे भौतिकी, रसायन तथा जीव विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान करने के लिए पर्याप्त संख्या में वैज्ञानिक नहीं मिलेंगे।
इन वास्तविकताओं के साथ, एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यहां यह उत्पन्न होता है कि वे जो चित्रकला, भाषा या संगीत में रुचि रखते हैं, जिनके सपनों के ताने-बाने इनके आसपास बुने जाते हैं, उनके सामने जीविकोपार्जन का संकट, उन्हें उन पंक्तियों में सम्मिलित होने के लिए विवश कर देता है जहां पहले ही लंबी कतारें है।
वोटबैंक की घ्रणित राजनीति से उपजे धार्मिक भेदभाव से लड़ता युवा वर्ग, अपनी आकांक्षाओं को कैसे पूरा करे, यह प्रश्न सहज सुलझता प्रतीत नहीं होता। इन चुनौतियों से जूझने के साथ देश का युवा, अपने ही देश में नेताओ के अंग्रेजी प्रेम के चलते हिंदी भाषा की उच्च शिक्षा में अवहेलना के कारण, न केवल अपना आत्मविश्वास खो रहा है बल्कि अपनी आकांक्षाओं की राह में यह उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती सिद्ध हो रही है।
हिंदी भाषा बोलने और अंग्रेजी न बोल पाने वाले छात्रों को हेय दृष्टि से देखने की प्रवृत्ति के साथ ही संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में हिंदी भाषी प्रतियोगियों के लिए कांग्रेस और भाजपा सरकारों ने अनेक रुकावटे पैदा करके मातृभाषा में शिक्षा के उद््देश्यों पर ही प्रश्नचिह्न अंकित कर दिया है।
पी0पी0एस0 का संकल्प है कि भृष्ट और स्वार्थी नेताओ के देन कृतिम बेरोजगारी से त्रस्त आज का युवा जो अपराध की ओर अग्रसर हो रहा है उसे युवा शक्ति में रूपांतरित करने के लिए सबसे पहले युवा को अपने स्वभाव को पहचानने का प्रशिक्षण देंगे।
क्योंकि प्रजाशक्ति पार्टी (स)के लोगो का मानना है कि स्वभाव के अनुरूप कार्य का चयन करने से पूरी क्षमता व संभावना का विकास होगा। भीड़ का हिस्सा बन, अपनी आजीविका का चयन करने के स्थान पर अपने स्वाभावानुरूप शिक्षा व तदनुरूप व्यवसाय का चयन आत्मसंतुष्टि का भाव देगा। ‘स्वभाव से स्वावलंबन’ युवा आकांक्षाओं की पूर्ति का मूलमंत्र सिद्ध होगा क्योकि वह कार्य या विषय जो रुचिकर हो, उसकी राह में आई चुनौतियां भी दुष्कर प्रतीत नहीं होती । पी0पी0एस0 शासन में हिंदी सहित सभी मातृ भाषाओ को पर्याप्त सम्मान मिलेगा सभी प्रतियोगी परीक्षाएं हिंदी और सभी भारतीय भाषाओं में देने का अवसर मिलेगा अब तक हो रहे अन्याय की भरपाई हेतु इन प्रतियोगियों को विशेष अनुकम्पा अंक दिए जाएंगे ।

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